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MERI KAVITAON KA LUTHF UTHAYEIN

Saturday, January 22, 2011

एक नारी की आत्मकथा

मै हूँ एक नारी........

नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी।
बड़ा कमजोर सा लगता है न मेरा नाम ।
दुर्भाग्य! नर मे दो बड़ी मात्रा जोड़ने से बनता है।
फिर भी नर से कमजोर हूँ मै, क्यूकि मै हूँ ,
नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी।

कितने नर तो मुझे जन्म ही नहीं लेने देते है।
नारी हूँ न पैदा होते ही मार देते है।
अरे! मुझे ढंग से आँखे भी नहीं खोलने देते है।
खत्म कर देते है मेरे पैदा होते ही मेरी जीवन कहानी।
नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी।

ओह! वह कैसा द्रश्य है? मेरी नजरो से देखो।
नारी के मंदिर मै नर की दुआये मांगी जा रही है।
अरे ओ मांगने वालो मत भूलो की देने वाली दुर्गा भी है एक नारी।
नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी।

अरे! वहा देखिये एक लड़के ने जन्म लिया है।
वाह! क्या बात है लड्डू बांटें जा रहे है।
मगर यह क्या हा हा यही देखिये यह हरियाणा है।
यहाँ कन्या के भ्रुर्ण निर्दयता से काटे जा रहे है।
क्या बेच खाई इन जालिमो ने मानवता सारी।
नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी।

अरे! वहा देखिये भाई बहन खेल रहे है,
माँ की आवाज मोहन स्कूल जा, मोहिनी चाय ला,
क्या लड़को को ही चाहिये शिक्षा लाडो को नहीं सिखानी?
नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी।

ओह! इधर तो देखे लड़की की शादी है।
मगर यह बाबुल राजा क्या बेच रहे है?
ओह! दहेज़ मे पांच लाख मांगे है।
वह तो अपना पुश्तैनी घर बेच रहे है।
दुल्हन ही दहेज़ है कब समझेंगे बात यह प्यारी?
नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी।

ओह वहा वो लड़की मिटटी के तेल के साथ क्या कर रही है?
नहीं, नहीं ऐसा मत करो बहिन ऐसा मत करो नहीं नहीं
अफ़सोस फिर दहेज़ की आग मे जल गयी किसी बाबुल की प्यारी.
नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी।

अरे मगर मे यह सब आपको क्यों बता रही हूँ ?
खाली आपको बता अपना गला सुखा रही हूँ !
आपने भी तो मुझे कोख मे मारा होगा.
मेरे बाबुल से दहेज़ तो माँगा ही होगा
'प्रताड़ित' शब्द मे सिमट गयी मेरी कहानी.
नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी।

पापा ओ पापा मुझे मत मरो मुस्काने दो
इस रंगीन दुनिया मे पंख फ़ैलाने दो
मुझे एक मौका तो दो रोशन आपका नाम करुँगी
मुझे एक मौका दो रोशन आपका नाम करुँगी.
प्रतिभा पाटिल कल्पना चावला बनूँगी
कुछ ऐसा कर दिखाउंगी की जाओगे मुझ पे वारी
नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी।

मेरे बिना दुनिया कैसी होगी, सोचो.
क्या नहीं सोच पा रहे हाँ मे जानती थी यह
मेरे बिना दुनिया अपना अस्तित्व झुठलाती है.
जन्म देती है नारी जननी कहलाती है
मेरे बिना कैसे चलेगी यह दुनिया दारी?
नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी

खेर आज आपने मेरी कथा सुनी कल भूल जाओगे।
फिर किसी नारी को जिन्दा जलते देखते जाओगे।
अरे अब भी वक़्त है चला दो इस बुराई पर आरी।
नारी हाँ मै ही हूँ, मै हूँ एक नारी

यह थी नारी की गाथा इसे जन जन तक पहुचना
नारी की रक्षा की सदा ही अलख जगाना
मारवाड़ी ने नारी के शब्दों से अपनी कलम संवारी
नारी हा वो थी, वो थी एक नारी

-
अमन अग्रवाल "मारवाड़ी"










Tuesday, January 18, 2011

वो सुहाना बचपना

वो बचपन मै वापस कहा से लाऊ ?
कोई तो बता दे कि किस दर पर जाऊ?
मै विनती करू मै इबादत करू लगाऊ मै ध्यान
मुझे मेरा बचपन लोटा दो भागवान

नहीं मुझको चहिये हीरा और मोती नहीं चहिये मुझको सोना
मुझे तो बस मेरे बचपन की यादों मे वापस जाकर है खोना
वो देर से उठना तेज साईकिल चलाना प्रार्थना मे करना रास्ट्र गान
मुझे मेरा बचपन लोटा दो भागवान

लोटा दो भगवन मुझे मेरे खिलोने का वो डब्बा
वो तोतली जुबान भी दो वापस जिससे खाने को कहता मे हप्पा
वो पापा के पीछे से टॉफिया खाना चट कर जाना अपनी दुकान
मुझे मेरा बचपन लोटा दो भगवान

वो आम की बगिया भी वापस लोटा दो जिसमे बैठ हम आम थे खाते
माली काका जब मारने आते उनको तो भाग उनको जीभ चिढाते
वो कहना माली अंकल का की अमन तू हो गया बड़ा ही शैतान
मुझे मेरा बचपन लोटा दे भगवान

'मारवाड़ी' पर भगवान कृपा बरसना
उसे उसका बचपन वापस लौटना
वापस जीना चाहू मे बन कर के नादान
मुझे मेरा बचपन लोटा दे भगवान

इस ही कड़ी मे मेरी एक और कविता उपरोक्त कविता से मिलती हुई
शीर्षक- वो स्कूल की यादें

स्कूल की बातें बहुत याद आती।
वो बचपन की यादें आंसू तक ले आती ।
वो देर से उठ मुह धो स्कूल को जाना ।
बहुत याद आता है वो बचपन सुहाना।

वो कक्षा की पढाई इंटरवेल की मस्ती।
हा याद है मुझको आठवे घंटे की सुस्ती।
वो खाली वादन मे अपनी कविता सुनाना।
बहुत याद आता है वो बचपन सुहाना।

वो ग्यारहवी कक्षा मे जिन्दगी गयी बदल ।
पढाई इतनी बढ़ गयी की माथे पे पढ़ा बल।
वो ट्यूशन से स्कूल , स्कूल से ट्यूशन को जाना।
बहुत याद आता है वो बचपन सुहाना।


वो पंद्रह अगस्त छब्बीस जनवरी की बातें
डांस प्रक्टीस मे कटते थे दिन और रातें
वो भारत माता की जय के नारे लगाना
बहुत याद आता है वो बचपन सुहाना

हे भगवन क्यों मुझको तुमने बड़ा किया?
'मारवाड़ी' से क्यों उसका बचपन ले लिया?
अमन को तुम उसका बचपन लौटना
बहुत याद आता है वो बचपन सुहाना